कामदा एकादशी 4 अप्रैल को, जान‍िए संपूर्ण कथा और व्रत व‍िध‍ि

चैत्र शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्‍यता है कि इस द‍िन जो भी साधक व्रत करता है उसे श्री हरि की व‍िशेष कृपा मिलती है। साथ ही उसके समस्‍त पापों का भी नाश हो जाता है। इस बार कामदा एकादशी कल यानी कि 4 अप्रैल को है। आइए जानते हैं क्‍या है इस व्रत की व‍िध‍ि और कथा?


ऐसे करना चाहिए एकादशी का व्रत


कामदा एकादशी के द‍िन सुबह-सवेरे नित्‍यकर्मों से निवृत्‍त होकर साफ-सुथरे वस्‍त्रों को धारण करना चाहिए। इसके बाद पूजा स्‍थान पर बैठकर श्री हरि की मूर्ति या फोटो के सामने गंगाजल लेकर मन ही मन व्रत करने का संकल्‍प करें। इसके बाद उन्‍हें प्रणाम करके एक-एक करके चंदन, अक्षत, फूल, फल, तिल, पंचामृत अर्पित करें। इन सारी वस्‍तुओं के साथ ही तुलसी दल जरूर अर्प‍ित करें। कामदा एकादशी की कथा पढ़कर आरती करें। श्री हर‍ि से क्षमा प्रार्थना करके प्रसाद सभी में बांट दें। इसके बाद जो प्रसाद बचा हो उसे ग्रहण कर लें। पूरा द‍िन व्रत करने के बाद शाम के समय भगवान विष्‍णु की पूजा-अर्चना करें। संभव हो तो रात्रि जागरण कर लें। इससे श्री हरि की असीम कृपा मिलती है। अगले द‍िन द्वादशी तिथि पर ब्राह्मण को यथासंभव दक्षिणा देकर पारण करें।


कामदा एकादशी की पौराणिक कथा


कामदा एकादशी को लेकर पौराणिक कथा मिलती है। इसके मुताबिक प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था। वहां पर पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था। भोगीपुर नगर का ऐसा प्रभाव था कि वहां अनेक अप्सरा, किन्नर और गंधर्व वास करते थे। वहीं ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष निवास करते थे। उनके बीच अत्‍यंत गहरा प्रेम था। वह एक-दूसरे से पल भर भी अलग नहीं रह पाते थे। अगर कभी ऐसी स्थिति आ भी जाए तो दोनों एक-दूसरे की याद में खो जाते थे। एक द‍िन जब लल‍ित राज दरबार में गान कर रहा था तो उसे अपनी पत्‍नी की ललिता की याद आ गई।


उसकी याद में जब बिगड़ गई लय-ताल


कथा मिलती है कि जब ललित को अपनी पत्‍नी ललिता की याद आई तो उसके सुर,लय और ताल बिगड़ने लगे। उसकी यह त्रुटि कर्कट नामक नाग ने पकड़ ली और राजा को पूरी बात बता दी। वह अत्‍यंत क्रोधित हुए और ललित को राक्षस योन‍ि में जन्‍म लेने का शाप दे द‍िया। जैसे ही इसकी सूचना ललिता को मिली वह अत्‍यंत दु:खी हुई। लेकिन शाप के आगे उसके आंसुओं की भी न चली और ललित वर्षों तक राक्षस योनि में रहा। रोती-परेशान ललिता अपनी यह तकलीफ लेकर ऋषि श्रृंगी के पास पहुंची।


ऋषि श्रृंगी ने द‍िखलाई ललिता को राह


ललिता का दु:ख सुनकर श्रृंगी ऋषि ने उसे चैत्र शुक्ल एकादशी अर्थात् कामदा एकादशी व्रत करने को कहा। उन्‍होंने बताया कि इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं। ऋषि ने कहा कि यदि वह कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का शाप भी स्‍वत: ही समाप्‍त हो जाएगा। ललिता ने ऋषि को प्रणाम किया और उनके बताए अनुसार व्रत का पालन किया। 


राक्षस योन‍ि से ऐसे मिली मुक्ति


ललिता ने पूरी श्रद्धा से चैत्र शुक्‍ल एकादशी का व्रत किया। उसकी निष्‍ठा और व्रत से भगवान हरि अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए। उनकी कृपा से ललित राक्षस योन‍ि से मुक्‍त हुए। व्रत का ऐसा प्रभाव हुआ कि ललिता और ललित दोनों को स्‍वर्गलोक की प्राप्ति हुई। मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से साधक कभी भी राक्षस योन‍ि में जन्‍म नहीं लेता। धर्म शास्‍त्रों में कहा जाता है कि संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है। इसकी कथा पढ़ने या सुनने मात्र से जीव का कल्‍याण हो जाता है।